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टिड्डी दल का आक्रमण (Locust Attack ) से बचाव के उपाय

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका niralaseeds.com में आज हम TIDDI dal attack क्या है और क्या है टिड्डी दल का आक्रमण (Locust Attack ) से बचाव के उपाय जानते है tiddi dal news में Locust Attack के बारे में पूरी जानकारी !


दोस्तों इन दिनों टिड्डी दल के आक्रमण से जुडी खबरे किसानो के लिए चिंता का विषय बनी हुयी है जो की हाल ही के दिनों में, कोरोना वायरस महामारी के दौरान, पाकिस्तान से सटे पश्चिमी भारतीय राज्यों जैसे राजस्थान तथा गुजरात में रेगिस्तानी टिड्डी दल हमले का बुरा प्रभाव देखा गया। पिछले कुछ महीनो में पाकिस्तान सीमा से सटे जिलों जैसे-जैसलमेर, बाड़मेर, श्री गंगानगर एवं उत्तरी-गुजरात के जिलों कच्छ, भुज, मेहसाना, पाटन, बास्की जिले को टिड्डियों के झुंड का सामना करना पड़ा था।

टिड्डी दल के आक्रमण (Locust Attack ) से नुकसान –

राज्यों के प्रसाशन तथा कृषि विभाग आरा इसके लिए कुछ सार्थक कदम भी उठाये गये थे। सरकारी सूत्रों की मानें तो टिड्डी हमले से, बाड़मेर में लगभग 30,000 हेक्टेयर,जालोर में 550,000 हेक्टेयर, जैसलमेर में 50,000 हेक्टेयर, जोधपुर में 10,000 हेक्टेयर, बांस्कुन्था में 24000 हेक्टेयर तथा पाटन में 800 हेक्टेयर सहित लगभग 2-4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें प्रभावित हुई हैं। टिड्डी दल का यह हमला 25 सालों का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। पिछले साल रेगिस्तानी टिड्डी दल के हमले से राजस्थान के 12 जिलों में सरसों, जीरा, गेहूं जैसी फसलों का लगभग 3 4 लाख हेक्टेयर का क्षेत्र बर्बाद हो गया था।

क्या होता है टिड्डी (Locust Attack ) ?

भारतीय किसानो के लिए चिंता का विषय बना ये क्या होते है ये रेगिस्तानी टिड्डी दल?:रेगिस्तानी टिड्डे, छोटी- शिखा वाले टिड्डे (ग्रासहॉपर) की प्रजातियों में से एक है, जो अपने व्यवहार को बदलने तथा मादा हॉपर के रूप में जानी जाती हैं। रेगिस्तानी टिड्डे का वैज्ञानिक नाम शिस्टोसेरका ग्रेगेरिया (फोर्सकल) होता है। इलियड, बाइबिल एवं कुरान जैसी पवित्र धार्मिक पुस्तकों में भी इन टिड्डो का वर्णन मिलता है, जहाँ इनहें शैतान की संज्ञा दी गयी है।रेगिस्तानी टिड्डी दल के बारे में कुछ तथ्य ज्ञात हो की, इनका एक छोटा झुंड एक दिन में लगभग 35,000 लोगों का खाना चट कर सकता है। इसे दुनिया का सबसे हानिकारक एवं खतरनाक प्रवासी कीट माना जाता है। ये टिड्डी दल एक दिन में लगभग 150 कि.मी. की दूरी तय कर सकते हैं। इनके एक दल(स्वार्म) में लगभग 100-200 करोड़ टिड्डियां होती है तथा ये 10 हफ्ते तक जीवित रह सकते हैं। सामान्यतः ये गर्मी और मानसून के महीनों के बीच में फसलों पर हमला करते है, लेकिन इस बार इनकी गतिविधियां समय से पूर्व देखी गई है, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग हो सकता है। कुछ कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किये गये सर्वे तथा शोध की रिपोर्ट के अनुसार, ‘एक मादा टिड्डी लगभग 100-160 अंडे देती है। वास्तव में, ये केवल नमी वाली जगहों में अंडे देते हैं। इसलिए, जब वे भारत पहुंचते है, तो अनुकूलित मानसून के कारण टिड्डियों की संख्या में अनियंत्रित रूप से वृद्धि होती है। टिड्डी मादाएं अपने जीवनकाल में आम तौर पर, कम से कम तीन बार लगभग 6-11 दिनों के अंतराल पर अंडे दे सकती हैं। एक वर्ग मीटर के क्षेत्र में लगभग 1,000 अंडे तक पाए जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्द ता एवं कृषि संगठन, रोम की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये क टिड्डी दल मनुष्यों में श्वास कि बीमारी जैसे- दमा, न्हें अस्थमा के भी कारण होते है, जिसके लिए उनके अंडे उत्सर्जन के दौरान उत्पन्न हार्मोन, जिम्मेदार होते है।

टिड्डी दल से बचाव के उपाय – chemical control of locusts
नियंत्रण एवं रोकथाम

FAO,रोम के अनुसार टिड्डी दल को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं

– गड्ढा खोदना, अंडों को दबा देना और कीटनाशक का छिड़काव। ऑर्गैनोफॉस्फेट रसायनों का कम सांद्रित मात्रा में ड्रोंस या हवाई जहाज की मदद से छिड़काव करना। . मेलाथियान कीटनाशक का छिड़काव।

– फफूंद रोगजनक का भी छिड़काव किया जा सकता है, जिससे टिड्डियों पर परजीवियों द्वारा हमला कर उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। यह प्रकिया जैविक नियंत्रण के अंतर्गत आती है। भारत में भी टिड्डी दल के प्रभाव को कम करने तथा उनकेनियंत्रण के लिए टिड्डी चेतावनी संस्थान (LWO) 000 स्थापना 1939 में की गयी है जिसका मुख्यालय पता खाद्द फरीदाबाद, हरियाणा में है तथा कुछ क्षेत्रीय केंद्र जोधपुर, जैसलमेर, जालोर, भुज, चुरू, बाड़मेर, सूरतगढ़ तथा साथ फलोदी में स्थित है। ये सभी संस्थान अपनी जानकारी है। Activate W FAO,रोम के साथ साझा करते हैं। राजस्थान तथा गुजरात में स्थानीय उपाय के तौर

Tiddi dal attack se bachne ke upay–
ग्रामीणों तथा किसानों द्वारा शाम से लेकर सुबह तक तेज आवाज वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों तथा लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है। किसान पटाखे जलाकर तथा थाली बजाकर, शोर-शराबा करके भी टिड्डियों को भगाने की कोशिश करते है। एक अनुमान के अनुसार, रेगिस्तानी टिड्डी दल का सफाया करने के लिए 200 400 टन कीटनाशक/रसायन का उपयोग अनुमान है।

टिड्डी दल के प्रकार–
भारत में विभिन्न प्रकार के टिड्डी दल हमला करते है,जिनमे से कुछ निम्न है- 1. रेगिस्तानी टिड्डा(Desert Locust) 2. प्रवासी टिड्डा(Migrant Locust) 3. alia टिड्डा(Bombay Locust) 4.पेड़ टिड्डा(Tree Locust)

इन सभी में रेगिस्तानी टिड्डा(Desert Locust), कृषि के लिए सबसे हानिकारक टिड्डी दल होता है, जिसका नियंत्रण आसान नहीं होता है। रेगिस्तानी टिड्डे का जन्म क्षेत्र मुख्यतः अफ्रीकन हॉर्न के रेगिस्तान इलाके में माना गया है, जहाँ से ये खाड़ी देशो को हानि पहुंचाते हुए पाकिस्तान एवं भारत में प्रवेश करते हैं। पिछले महीनों, राजस्थान एवं गुजरात सरकार के द्वारा फसल हानि की भरपाई के लिए 30 से लेकर 40 करोड़ तक का राहत पैकेज भी जारी किया गया था, जो वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए पर्याप्त नहीं था। इसप्रकार, इस कोरोना महामारी के दौर में लोगो के साथ-साथ, फसलों की भी सुरक्षा भी अति-आवश्यक है। इस ‘उडते हुये शत्रु’ से खड़ी फसलों को भी कोरनटाइन करने की आवश्यकता भी समय की मांग बनती जा रही है।

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